Monday, 9 March 2015

खुशियाँ ख़रीदनी है??


मुझे पीके फिल्म का एक सीन याद आया |
अनुष्का: तुम रहते कहा हो?
पीके : वैसे तो हम कहीं भी रह लेता हू पर आज कल बरसात बहुत हो रही है इसीलिए पोलीस स्टेशन में चेक इन कर लेता हूँ|

जी हाँ | यही है वो बंदा जिसने खुशियाँ खरीदी हैं| पैसो से नही, अपनी सूझबूझ और ज़िद से| 

बड़ी भा गयी मुझे यह बात| सोने के लिए ठिकाना नहीं पर अपनी चालाकी से सारी बात हॅंडल कर ली| 
सचमुच, आजकल शहरो मे एक बीघा ज़मीन भी लोगो को नसीब नही होती| लोग जहाँ कहीं जगह मिले वहीं रह लेते हैं| जो कुछ भी मिले वह खा लेते हैं| पर ये तो हालत से अड्जस्टमेंट है.. क्यू ना इस हालत को एंजाय्मेंट बनाया जाए ! हमारे रोजमर्रा के कामो मे भी हम अड्जस्टमेंट ही कर लेते हैं, क्यू ना इसे एंजाय्मेंट क तौर पर देखा जाए..|जी हाँ , ये  हो सकता है| 
 तारक मेहता कहते हैं, प्रॉब्लम्स तो हैं सब के साथ, केवल नज़रिए की है बात! 
बिल्कुल यही सोच हम रखे , अपना नज़रिया बदले | आज मे खुशी से जिए, कल की और आशावादी रहकर, तो हम सारी मंजिले पा सकते हैं| रिमेंबर दा सीक्रेट, जो आप सोचते हैं , वैसा ही आपके साथ होने लगता है| सोच बदलो, आपकी दुनिया बदलेगी |